मंगलवार, 23 जून 2009

वास्तु में दिशा का महत्व

वास्तु में दिशा का महत्व

वास्तुशास्त्र, जिसे वेदों में स्थापत्य वेद कहा गया है, में हमें भवन निर्माण संबंधी नियमों का वर्णन मिलता है। वे भवन विशाल मंदिर, राजमहल, सार्वजनिक स्थल या घर हो सकते हैं। घर का निर्माण इस प्रकार हो कि उसमें निवास करने वाले व्यक्तियों को प्रकृति की पोषणकारी शक्ति प्राप्त हो ताकि वे निरोगी रहते हुए बिना बाधा के उत्तरोत्तर विकास करते हुए सफलता प्राप्त कर सकें।

इस लेख के माध्यम से हम दिशा व उसके प्रभाव का अध्ययन करेंगे। जैसा कि हम सब जानते हैं कि ग्रह नौ हैं। ये ग्रह विभिन्न दिशाओं के स्वामी हैं।

सूर्यः सितो भूमिसुतोऽदय राहुः शनिः शशीज्ञश्च बृहस्पतिश्चप्राच्यादितोदिक्षुविदिक्षुचापिदिशामधीशाः क्रमतः प्रदिष्टा ॥49॥11॥ मुहूर्त चिंतामणि॥

पूर्व दिशा का स्वामी सूर्य है। इस दिशा में भवन शास्त्र के अनुसार उचित प्रकार से बना हो, इस दिशा का विकिरण घर में आता हो, कोई दोष नहीं हो तो उस घर में निवास करने वाले व्यक्तियों को उत्तम स्वास्थ्य, धन-धान्य की प्राप्ति होती है। निर्माण दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति इनसे वंचित रहता है। रोगी होने की आशंका अधिक रहती है।

अग्निकोण का स्वामी शुक्र ग्रह है, यह ग्रह भौतिक सुख व भौतिक उन्नति देता है। यह दिशा शास्त्रानुसार होने पर धन, प्रसिद्धि, भौतिक सुख, इच्छाओं की पूर्ति सुगमता से होती है। घर के इस भाग में गंदगी, कचरा-कूड़ा, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए। इसे लक्ष्मी का स्थान भी कहा गया है।

घर के दक्षिण की दिशा मंगल की है, इसका सबसे अधिक प्रभाव गृहस्वामी पर होता है, उसकी स्वास्थ्य व प्रगति मुख्यतः इसी दिशा पर आधारित है।

पूर्व दिशा का स्वामी सूर्य है। इस दिशा में भवन शास्त्र के अनुसार उचित प्रकार से बना हो, इस दिशा का विकिरण घर में आता हो, कोई दोष नहीं हो तो उस घर में निवास करने वाले व्यक्तियों को उत्तम स्वास्थ्य, धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

नैऋत्य दिशा राहु की है। यह दोषपूर्ण होने पर कलह कराती है तथा पितृ का स्थान होने से वंशवृद्धि को प्रभावित करती है।
पश्चिम दिशा का स्वामी शनि है। इसका प्रभाव बंधु, पुत्र, धान्य तथा उत्कृष्ट उन्नति पर अधिक होता है।
पश्चिमोत्तर दिशा का स्वामी चंद्रमा है। चंद्रमा चंचलता का, मन का, गति का प्रतीक है। यह दिशा नौकर, वाहन, गमन तथा पुत्र को प्रभावित करती है।
उत्तर दिशा का स्वामी बुध है। यह दिशा विजय, धन व वृद्धि को प्रभावित करती है।
पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी बृहस्पति है। घर का यह भाग साफ-सुथरा तथा अनुकूल होने पर सभी कामनाओं की पूर्ति करते हुए आनंद देता है।

इस प्रकार से हम देखते हैं कि घर का प्रत्येक हिस्सा महत्वपूर्ण है तथा अलग-अलग दिशा अलग-अलग बातों को विशेष रूप से प्रभावित करती है। इसलिए घर का प्रत्येक भाग उचित रूप से बना होना चाहिए। पूर्व तथा उत्तर की किरणें घर में सीधे प्रवेश करें तो उसमें निवास करने वाले उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए लक्ष्य प्राप्त करते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

बुधवार, 10 जून 2009

घर बनाना कब प्रारंभ करें?

शुक्ल पक्ष में करें गृह निर्माण

वास्तु शास्त्र में प्राचीन मनीषियों ने सूर्य के विविध राशियों पर भ्रमण के आधार पर उस माह में घर निर्माण प्रारंभ करने के फलों की ‍विवेचना की है।

1. मेष राशि में सूर्य होने पर घर बनाना प्रारंभ करना अति लाभदायक होता है।

2. वृषभ र‍ाशि में सूर्य : संपत्ति बढ़ना, आर्थिक लाभ

3. मिथुन राशि में सूर्य : गृह स्वामी को कष्ट

4. कर्क राशि में सूर्य : धन-धान्य में वृद्धि

5. सिंह राशि का सूर्य : यश, सेवकों का सुख

6. कन्या राशि का सूर्य : रोग, बीमारी आना

7. तुला राशि का सूर्य : सौख्‍य, सुखदायक

8. वृश्चिक राशि का सूर्य : धन लाभ

9. धनु राशि का सूर्य : भरपूर हानि, विनाश

10. मकर राशि का सूर्य : धन, संपत्ति वृद्धि

11. कुंभ राशि का सूर्य : रत्न, धातु लाभ
12. मीन राशि का सूर्य : चौतरफा नुकसान

घर बनाने का प्रारंभ हमेशा शुक्ल पक्ष में करना चाहिए। फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रवण और ‍कार्तिक माहों में शुरू किया गया गृह निर्माण उत्तम फल देता है।

वर्जित क्या करें :
मंगलवार व रविवार, प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या तिथियाँ, जेष्ठा रेवती, मूल नक्षत्र, वज्र, व्याघात, शूल, व्यतिपात, गंड, विषकुंभ, परिध, अतिगंड, योग - इनमें घर का निर्माण या कोई जीर्णोद्धार भूलकर भी नहीं करना चाहिए अन्यथा घर फलदायक नहीं होता।

अति शुभ योग :
शनिवार, स्वाति, नक्षत्र सिंह लग्न, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग और श्रावण मास ये सभी यदि एक ही दिन उपलब्ध हो सके, तो ऐसा घर दैवी आनंद व सुखों की अनुभूति कराने वाला होता है।

गुरुवार, 28 मई 2009

प्यार का कमरा हो प्यारा

वास्तु के अनुरूप बनाएँ बेडरूम
बेडरूम वो जगह है, जहाँ दंपत्ति एक-दूसरे के साथ अंतरंग पल गुजारते हैं। पति-पत्नी के प्यार का साक्षी यह कक्ष ऐसा होना चाहिए, जिसमें प्रवेश करते ही उन्हें एक असीम शांति का अनुभव हो।
आपका बेडरूम यदि वास्तु के अनुरूप हो तो वह आपके संबंधों व कार्यशैली पर भी प्रभाव डालेगा। मधुर दांपत्य जीवन व पावारिक कलह से निजात पाने के लिए बेडरूम को बनावट व साज-सज्जा वास्तु के अनुरूप होनी चाहिए।
यदि हम रात को चैन की नींद सोते हैं तो हमारा दिनभर अच्छा गुजरता है परंतु कई बार बिस्तर पर करवटें बदलने में ही हमारी रात गुजर जाती है और तनाव में पूरा दिन बीत जाता है। वास्तु के अनुसार यह सब कुछ बेडरूम की दिशा सही नहीं होने से होता है।
कभी भी बेडरूम में बेड के सामने टीवी या ड्रेसिंग टेबल नहीं होना चाहिए। वास्तु के हिसाब से यह अशुभ माना जाता है क्योंकि इससे किसी तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति का आभास होता है।
* क्या कहता है वास्तु :-
दीर्घकालीन दांपत्य सुख की प्राप्ति के लिए गृहस्वामी का बेडरूम दक्षिण-पश्चिम अथवा पश्चिम दिशा में होना चाहिए। गृहस्वामी के बेडरूम को 'मास्टर बेडरूम' कहते हैं। यह कक्ष आयताकार तथा उसमें अटैच लेट-बाथ उत्तर-पश्चिम दिशा में होना वास्तु के अनुसार अच्छा होता है।
दरवाजे व खिड़कियाँ किसी भी कक्ष का महत्वपूर्ण भाग होते हैं। इन्हीं से कक्ष में सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। वास्तुदोष से बचने के लिए बेडरूम का मुख्य द्वार उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। ध्यान रहें कि इस कक्ष के दक्षिण-पश्चिम कोने में कोई खिड़की न हो।
कई बार कक्ष की साज-सज्जा करते समय हम उसकी हर दीवार व कोनों को सामान व डेकोरेटिव चीजों से पूरा भर देते हैं ताकि वो सुंदर लगे। वास्तु के अनुसार मास्टर बेडरूम को पूरा फर्नीचर से भरना अच्छा नहीं माना जाता। इस कक्ष में कम से कम व वजन में हल्का फर्नीचर रखना बेहतर होता है।
* जिस पर हम ले सकें चैन की नींद :-
बेडरूम का मुख्य आकर्षण 'बेड' होता है। बेडरूम में बेड की दिशा पर ध्यान देना बेहद जरूरी होता है। वास्तु के अनुसार आपके बेड का अधिकांश हिस्सा दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
बेड पर सोते समय हमेशा दिशा का ध्यान रखना चाहिए। दंपत्ति का सिर दक्षिण में तथा पैर उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। कभी भी बेडरूम में बेड के सामने टीवी या ड्रेसिंग टेबल नहीं होना चाहिए। वास्तु के हिसाब से यह अशुभ माना जाता है क्योंकि इससे किसी तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति का आभास होता है। वास्तु के अनुसार यदि बेडरूम का निर्माण व साज-सज्जा की जाए तो प्यार के इस कक्ष से हमेशा प्यार ही बरसेगा और आपका वैवाहिक संबंध मधुर व दीर्घायु बनेंगे। 'वास्तु' कोई जादू या टोना-टोटका नहीं है बल्कि दिशाओं का खेल है। घर का अस्त-व्यस्त पड़ा सामान सही दिशा में रखने से यदि हमारे जीवन में कोई सकारात्मक परिवर्तन आता है तो उससे अच्छी बात और क्या होगी?

वास्तुदोष बन सकता है अनिष्ट का कारण

वास्तुदोष बन सकता है अनिष्ट का कारण
किसी भवन का वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार निर्माण नहीं किए जाने पर वह निर्माणकर्ता और गृहस्वामी दोनों के लिए अनिष्ट का कारण बन सकता है। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने वास्तुदोष के कारण ही ताजमहल का निर्माण करने वाले राजमिस्त्री के दोनों हाथ कटवा दिए थे और मुम्बई में ताज होटल में आतंकवादी वारदात भी उसकी बनावट में वास्तुदोष की वजह से हुई थी।
देश के प्रसिद्ध वास्तुशास्त्री सुखदेवसिंह ने विशेष बातचीत में अपने इन दावों के प्रमाण में कहा कि मकान या कार्यालय के निर्माण के दौरान निर्माण से जुड़ी दिक्कतों का आना मुख्यतः वास्तुदोष के कारण ही होता है। मकान बनाते समय वास्तुशास्त्र के नियमों का ध्यान नहीं रखे जाने पर उसके निर्माण में लगे श्रमिकों और मिस्त्री पर तत्काल किसी न किसी तरह की मुसीबत आ जाती है। इसके बाद गृहस्वामी को भी कोई न कोई हानि उठानी पड़ती है।
राजस्थान के गंगानगर निवासी सिंह ने कहा कि उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपने मकान का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार नहीं कराता है तो मिस्त्री को चोट लग सकती है या उसका गृहस्वामी से झगड़ा हो सकता है अथवा निर्माण कार्य में विघ्न पड़ सकता है।
सिंह ने बताया कि वास्तुशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र का चोली-दामन का साथ है लेकिन जब व्यक्ति ज्योतिष को ही महत्व देता है तभी वह अपने साथ घटी किसी विपरीत घटना को भगवान् का कोप मानता है जबकि ईश्वर किसी का बुरा नहीं चाहता है। जिस तरह ईश्वर ने आत्मा का घर शरीर बनाया है, उसी तरह घर का शरीर भी यदि सभी अंगों से पूर्ण नहीं होगा तो मनुष्य को उस घर में रहने में परेशानी होगी।
उन्होंने मकान के निर्माण में वास्तुशास्त्र की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि आदर्श घर की बनावट के आधार पर ही उसके गृहस्वामी की दिनचर्या, आय, चरित्र और भविष्य तथा बच्चों की पढ़ाई आदि से जुडी तमाम व्यवस्थाएँ निर्धारित होती हैं। यहाँ तक कि मनुष्य के साथ घटने वाली छोटी-बड़ी तमाम घटनाएँ और दुर्घटनाएँ भी घर की बनावट पर ही निर्भर हैं।
उन्होंने कहा कि यदि कार्यालय का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार किया जाए तो व्यक्ति की आय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। जिस तरह मनुष्य की जन्मपत्री होती है उसी तरह घर की भी एक कुंडली होती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार मकान बनाने के नियमों के बारे में उन्होंने बताया कि वायव्य कोण बच्चों के लिए बेहद शुभ होता है। गृहस्वामी का कमरा नैऋत्य कोण पर होना चाहिए। अग्नि कोण में निर्मित रसोईघर कम खर्चीली होती है लेकिन यदि वह वायव्य कोण में बनी हो तो बेहद खर्चीली साबित होती है।
सिंह ने बताया कि मकान या कार्यालय के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का खराब रहने की समस्या भी वास्तुशास्त्र से जुड़ी है। यदि कार्यालय में प्रमुख के बैठने स्थान नैऋत्य कोण में है तो उसे आदर्श कार्यालय कहा जाएगा। किसी घर में यदि कोई महिला या पुरुष अथवा बच्चा नहीं है तो निश्चित मानिए कि मकान का निर्माण वास्तुदोष से प्रभावित है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार आदर्श मकान की पहचान यह है कि उसके ईशान-नैऋत्य कोण पर 'कटिंग गेट' नहीं होना चाहिए लेकिन यदि ऐसा होता है तो मनुष्य के साथ कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती है।
सिंह ने कहा कि वास्तु से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों पर नियंत्रण किया जा सकता है। उत्पादन कार्य करने वाली मशीनों को भी यदि वास्तुशास्त्र के अनुसार रखा जाए तो उत्पादन और बिक्री पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

मंगलवार, 26 मई 2009

ईशान में बना शौचालय हानिकारक

सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र में न बनाएँ शौचालय
शौचालय बनाते वक्त काफी सावधानी रखना चाहिए, नहीं तो ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं और हमारे जीवन में शुभता की कमी आने से मन अशांत महसूस करता है।
इसमें आर्थिक बाधा का होना, उन्नति में रुकावट आना, घर में रोग घेरे रहना जैसी घटना घटती रहती है।
शौचालय को ऐसी जगह बनाएँ जहाँ से सकारात्मक ऊर्जा न आती हो व ऐसा स्थान चुनें जो खराब ऊर्जा वाला क्षेत्र हो।
घर के दरवाजे के सामने शौचालय का दरवाजा नहीं होना चाहिए, ऐसी स्थिति होने से उस घर में हानिकारक ऊर्जा का संचार होगा।
सोते वक्त शौचालय का द्वार आपके मुख की ओर नहीं होना चाहिए।
शौचालय अलग-अलग न बनवाते हुए एक के ऊपर एक होना चाहिए।
ईशान कोण में कभी भी शौचालय नहीं होना चाहिए, नहीं तो ऐसा शौचालय सदैव हानिकारक ही रहता है।
शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पश्चिम में हो या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। वैसे पश्चिम दिशा भी इसके लिए ठीक रहती है।
शौचालय का द्वार मंदिर, किचन आदि के सामने न खुलता हो। इस प्रकार हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर सकारात्मक ऊर्जा पा सकते हैं व नकारात्मक ऊर्जा से दूर रह सकते हैं।

सोमवार, 25 मई 2009

वास्तु अपनाएँ धन बढ़ाएँ

वास्तु अपनाएँ धन बढ़ाएँ
प्रत्येक व्यक्ति अपनी मेहनत से कमाए धन को सुरक्षित रखना तो चाहता ही है, साथ ही यह भी चाहता है कि उसमें दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी होती रहे। सामान्यतः हर व्यक्ति पैसे, आभूषण, मूल्यवान वस्तुएँ, कागजात वगैरह को सुरक्षित रखने के लिए तिजोरी, अलमारी, कैशबॉक्स इत्यादि का उपयोग करता है। इनमें धन सुरक्षित भी रहे और बढ़ता भी रहे। धन रखने के लिए उत्तर दिशा को सबसे शुभ माना गया है क्योंकि उत्तर दिशा का स्वामी धन का देवता कुबेर है।

* उत्तर दिशा : घर की इस दिशा में कैश व आभूषण जिस अलमारी में रखते हैं, वह अलमारी भवन की उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी, उसमें रखे गए पैसे और आभूषण में हमेशा वृद्धि होती रहेगी।
* ईशान कोण : यहाँ पैसा, धन और आभूषण रखे जाएँ तो यह दर्शाता है कि घर का मुखिया बुद्धिमान है और यदि यह उत्तर ईशान में रखे हों तो घर की एक कन्या संतान और यदि पूर्व ईशान में रखे हों तो एक पुत्र संतान बहुत बुद्धिमान और प्रसिद्ध है।
* पूर्व दिशा : यहाँ घर की संपत्ति और तिजोरी रखना बहुत शुभ होता है और उसमें बढ़ोतरी होती रहती है।
* आग्नेय कोण : यहाँ धन रखने से धन घटता है, क्योंकि घर के मुखिया की आमदनी घर के खर्चे से कम होने के कारण कर्ज की स्थिति बनी रहती है।
* दक्षिण दिशा : इस दिशा में धन, सोना, चाँदी और आभूषण रखने से नुकसान तो नहीं होता परंतु बढ़ोत्तरी भी विशेष नहीं होती है।
* नैऋत्य कोण : यहाँ धन, महँगा सामान और आभूषण रखे जाएँ तो वह टिकते जरूर है, किंतु एक बात अवश्य रहती है कि यह धन और सामान गलत ढंग से कमाया हुआ होता है।
* पश्चिम दिशा : यहाँ धन-संपत्ति और आभूषण रखे जाएँ तो साधारण ही शुभता का लाभ मिलता है। परंतु घर का मुखिया अपने स्त्री-पुरुष मित्रों का सहयोग होने के बाद भी बड़ी कठिनाई के साथ धन कमा पाता है।
* वायव्य कोण : यहाँ धन रखा हो तो खर्च जितनी आमदनी जुटा पाना मुश्किल होता है। ऐसे व्यक्ति का बजट हमेशा गड़बड़ाया रहता है और कर्जदारों से सताया जाता है।
घर की तिजोरी के पल्ले पर बैठी हुई लक्ष्मीजी की तस्वीर जिसमें दो हाथी सूंड उठाए नजर आते हैं, लगाना बड़ा शुभ होता है। तिजोरी वाले कमरे का रंग क्रीम या आफ व्हाइट रखना चाहिए।
सीढ़ियों के नीचे तिजोरी रखना शुभ नहीं होता है। सीढ़ियों या टायलेट के सामने भी तिजोरी नहीं रखना चाहिए। तिजोरी वाले कमरे में कबाड़ या मकड़ी के जाले होने से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जो परिवार की खुशहाली में बाधा उत्पन्न करती है।
घर के अंदर से देखने पर घर के आगे के भाग के दाएँ हाथ की खिड़की पर स्थित कमरे में घर के जेवर, गहने, सोने-चाँदी के सामान, लक्जरी आर्टिकल्स रखे जाते हों, उस घर की मालकिन को सुख-सुविधाएँ पसंद होती हैं और उसे बहुत खुशियाँ प्राप्त होती हैं। उसका पैसा बेमतलब की वस्तुओं पर खर्च होता है और स्वास्थ्य हमेशा नरम-गरम चलता रहता है।
यदि ड्राइंग हॉल को पति-पत्नी अपने बेडरूम की तरह उपयोग में लें और उसका कोई भाग घर के पैसे और गहने रखने के काम में आ रहा हो तो ऐसे घर की महिला बुद्धिमान, सुंदर, बातचीत से प्रभावित करने वाली होती है और घर का मुखिया व्यापार में जमीन-जायदाद में बहुत अच्छा पैसा सरलता से कमाता है और लग्जरी के सब सुख-साधनों का उपभोग करता है। पति पत्नी को प्यार करता है और दोस्तों से अच्छे संबंध रखता है, पत्नी भी बहुत बुद्धिमान और संवेदनशील रहती है। यदि हॉल के अंदर इस तरह लोहे की तिजोरी में पैसा रखा जाए तो यह मानिए की यह बहुत शुभ और अच्छा होता है।
घर के खाद्यान्न रखने के कमरे में यदि घर के गहने, पैसे, आभूषण, कपड़े इत्यादि रखे जाएँ या यह सामान रखने का ही एक भाग हो तो ऐसे लोग पैसे उधार देने का काम करते हैं या ऐसे लोग लग्जरी आइटम या बड़े सौदों का काम कर पैसा कमाते हैं।
फेंगशुई के अनुसार शयनकक्ष या तिजोरी वाले कमरे के प्रवेश द्वार के सामने वाली दीवार के बाएँ कोने में संपत्ति एवं भाग्य का क्षेत्र होता है। यह कोना कभी भी कटा हुआ नहीं होना चाहिए और यहाँ पर धातु की कोई चीज रखना या लटकाना धन वृद्धि में सहायक होता है।

बुधवार, 13 मई 2009

लाल किताब में वृक्षों का महत्व

हमारे यहाँ देव संस्कृति में प्रकृति को शक्ति रूप में पूजा जाता है। व्यक्ति जब प्रत्येक कार्य में प्रकृति के नियम का पालन करता है तब वह सुखी और आरोग्य रहता है। लाल किताब में वृक्षों का क्या महत्व है और जातक की कुंडली के अनुसार कौन-कौन-सा वृक्ष लाभकारी है या नहीं, इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।

लाल किताब में हर ग्रह किसी न किसी वृक्ष का कारक है और कुंडली में जो अच्छे ग्रह हैं उनके वृक्षों का घर के पास होना शुभ माना गया है। बृहस्पति ग्रह पीपल के वृक्ष का कारक है। यदि कुंडली में बृहस्पति शुभ हो और जिस भाव में बैठा है, मकान के उस हिस्से में या उस दिशा तरफ पीपल का वृक्ष लगाना शुभ फल देगा।

इस वृक्ष में कभी-कभी दूध डालते रहना चाहिए तथा उसके आसपास गंदगी नहीं रखना चाहिए। सूर्य तेज फल के वृक्ष का कारक है, जिस भाव में बैठा है, उस भाव की तरफ घर से बाहर या अंदर तेज फल का वृक्ष शुभ फलदायी होता है। शुक्र का कारक कपास का पौधा है और मनी प्लांट पौधा भी शुक्र का कारक है। कोई भी जमीन पर आगे बढ़ने वाली लेटी हुई बेल शुक्र की कारक है।
यदि शुक्र कुंडली में अच्छा है तो घर में मनी प्लांट लगाना अत्यधिक शुभ फलकारी है। आजकल के जमाने में घर अंदर से पूरी तरह पक्के होते हैं। इसलिए घर में शुक्र स्थापित नहीं होता है, क्योंकि शुक्र कच्ची जमीन का कारक है। इसलिए घर में कहीं भी कच्ची जमीन न हो तो मनी प्लांट लगाना शुभ फल का कारक है। मंगल नीम के पेड़ का कारक है, अतः भाव अनुसार नीम का पेड़ शुभ फल देगा।

केक्टस और किसी भी प्रकार के काँटे वाले पौधे घर में स्थापित करना शुभ नहीं होता है। केतु इमली का वृक्ष, तिल के पौधे तथा केले के फल का कारक है। यदि केतु खराब हो तो इन पौधों को घर के आसपास लगाना घर के मालिक के बेटे के लिए अशुभ फल का कारक हो जाता है, क्योंकि कुंडली में केतु हमारे बेटे को कारक भी है।

बुध का कारक केला या चौड़े पत्तों के वृक्ष है। शनि कीकर, आम और खजूर के वृक्ष का कारक है। इन वृक्षों को शुभ स्थिति में भी घर के आसपास स्थापित नहीं होने देना चाहिए। नारियल का पेड़ या आज के जमाने में केक्टस राहु के कारक हैं।