गुरुवार, 28 मई 2009

प्यार का कमरा हो प्यारा

वास्तु के अनुरूप बनाएँ बेडरूम
बेडरूम वो जगह है, जहाँ दंपत्ति एक-दूसरे के साथ अंतरंग पल गुजारते हैं। पति-पत्नी के प्यार का साक्षी यह कक्ष ऐसा होना चाहिए, जिसमें प्रवेश करते ही उन्हें एक असीम शांति का अनुभव हो।
आपका बेडरूम यदि वास्तु के अनुरूप हो तो वह आपके संबंधों व कार्यशैली पर भी प्रभाव डालेगा। मधुर दांपत्य जीवन व पावारिक कलह से निजात पाने के लिए बेडरूम को बनावट व साज-सज्जा वास्तु के अनुरूप होनी चाहिए।
यदि हम रात को चैन की नींद सोते हैं तो हमारा दिनभर अच्छा गुजरता है परंतु कई बार बिस्तर पर करवटें बदलने में ही हमारी रात गुजर जाती है और तनाव में पूरा दिन बीत जाता है। वास्तु के अनुसार यह सब कुछ बेडरूम की दिशा सही नहीं होने से होता है।
कभी भी बेडरूम में बेड के सामने टीवी या ड्रेसिंग टेबल नहीं होना चाहिए। वास्तु के हिसाब से यह अशुभ माना जाता है क्योंकि इससे किसी तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति का आभास होता है।
* क्या कहता है वास्तु :-
दीर्घकालीन दांपत्य सुख की प्राप्ति के लिए गृहस्वामी का बेडरूम दक्षिण-पश्चिम अथवा पश्चिम दिशा में होना चाहिए। गृहस्वामी के बेडरूम को 'मास्टर बेडरूम' कहते हैं। यह कक्ष आयताकार तथा उसमें अटैच लेट-बाथ उत्तर-पश्चिम दिशा में होना वास्तु के अनुसार अच्छा होता है।
दरवाजे व खिड़कियाँ किसी भी कक्ष का महत्वपूर्ण भाग होते हैं। इन्हीं से कक्ष में सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। वास्तुदोष से बचने के लिए बेडरूम का मुख्य द्वार उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। ध्यान रहें कि इस कक्ष के दक्षिण-पश्चिम कोने में कोई खिड़की न हो।
कई बार कक्ष की साज-सज्जा करते समय हम उसकी हर दीवार व कोनों को सामान व डेकोरेटिव चीजों से पूरा भर देते हैं ताकि वो सुंदर लगे। वास्तु के अनुसार मास्टर बेडरूम को पूरा फर्नीचर से भरना अच्छा नहीं माना जाता। इस कक्ष में कम से कम व वजन में हल्का फर्नीचर रखना बेहतर होता है।
* जिस पर हम ले सकें चैन की नींद :-
बेडरूम का मुख्य आकर्षण 'बेड' होता है। बेडरूम में बेड की दिशा पर ध्यान देना बेहद जरूरी होता है। वास्तु के अनुसार आपके बेड का अधिकांश हिस्सा दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
बेड पर सोते समय हमेशा दिशा का ध्यान रखना चाहिए। दंपत्ति का सिर दक्षिण में तथा पैर उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। कभी भी बेडरूम में बेड के सामने टीवी या ड्रेसिंग टेबल नहीं होना चाहिए। वास्तु के हिसाब से यह अशुभ माना जाता है क्योंकि इससे किसी तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति का आभास होता है। वास्तु के अनुसार यदि बेडरूम का निर्माण व साज-सज्जा की जाए तो प्यार के इस कक्ष से हमेशा प्यार ही बरसेगा और आपका वैवाहिक संबंध मधुर व दीर्घायु बनेंगे। 'वास्तु' कोई जादू या टोना-टोटका नहीं है बल्कि दिशाओं का खेल है। घर का अस्त-व्यस्त पड़ा सामान सही दिशा में रखने से यदि हमारे जीवन में कोई सकारात्मक परिवर्तन आता है तो उससे अच्छी बात और क्या होगी?

वास्तुदोष बन सकता है अनिष्ट का कारण

वास्तुदोष बन सकता है अनिष्ट का कारण
किसी भवन का वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार निर्माण नहीं किए जाने पर वह निर्माणकर्ता और गृहस्वामी दोनों के लिए अनिष्ट का कारण बन सकता है। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने वास्तुदोष के कारण ही ताजमहल का निर्माण करने वाले राजमिस्त्री के दोनों हाथ कटवा दिए थे और मुम्बई में ताज होटल में आतंकवादी वारदात भी उसकी बनावट में वास्तुदोष की वजह से हुई थी।
देश के प्रसिद्ध वास्तुशास्त्री सुखदेवसिंह ने विशेष बातचीत में अपने इन दावों के प्रमाण में कहा कि मकान या कार्यालय के निर्माण के दौरान निर्माण से जुड़ी दिक्कतों का आना मुख्यतः वास्तुदोष के कारण ही होता है। मकान बनाते समय वास्तुशास्त्र के नियमों का ध्यान नहीं रखे जाने पर उसके निर्माण में लगे श्रमिकों और मिस्त्री पर तत्काल किसी न किसी तरह की मुसीबत आ जाती है। इसके बाद गृहस्वामी को भी कोई न कोई हानि उठानी पड़ती है।
राजस्थान के गंगानगर निवासी सिंह ने कहा कि उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपने मकान का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार नहीं कराता है तो मिस्त्री को चोट लग सकती है या उसका गृहस्वामी से झगड़ा हो सकता है अथवा निर्माण कार्य में विघ्न पड़ सकता है।
सिंह ने बताया कि वास्तुशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र का चोली-दामन का साथ है लेकिन जब व्यक्ति ज्योतिष को ही महत्व देता है तभी वह अपने साथ घटी किसी विपरीत घटना को भगवान् का कोप मानता है जबकि ईश्वर किसी का बुरा नहीं चाहता है। जिस तरह ईश्वर ने आत्मा का घर शरीर बनाया है, उसी तरह घर का शरीर भी यदि सभी अंगों से पूर्ण नहीं होगा तो मनुष्य को उस घर में रहने में परेशानी होगी।
उन्होंने मकान के निर्माण में वास्तुशास्त्र की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि आदर्श घर की बनावट के आधार पर ही उसके गृहस्वामी की दिनचर्या, आय, चरित्र और भविष्य तथा बच्चों की पढ़ाई आदि से जुडी तमाम व्यवस्थाएँ निर्धारित होती हैं। यहाँ तक कि मनुष्य के साथ घटने वाली छोटी-बड़ी तमाम घटनाएँ और दुर्घटनाएँ भी घर की बनावट पर ही निर्भर हैं।
उन्होंने कहा कि यदि कार्यालय का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार किया जाए तो व्यक्ति की आय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। जिस तरह मनुष्य की जन्मपत्री होती है उसी तरह घर की भी एक कुंडली होती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार मकान बनाने के नियमों के बारे में उन्होंने बताया कि वायव्य कोण बच्चों के लिए बेहद शुभ होता है। गृहस्वामी का कमरा नैऋत्य कोण पर होना चाहिए। अग्नि कोण में निर्मित रसोईघर कम खर्चीली होती है लेकिन यदि वह वायव्य कोण में बनी हो तो बेहद खर्चीली साबित होती है।
सिंह ने बताया कि मकान या कार्यालय के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का खराब रहने की समस्या भी वास्तुशास्त्र से जुड़ी है। यदि कार्यालय में प्रमुख के बैठने स्थान नैऋत्य कोण में है तो उसे आदर्श कार्यालय कहा जाएगा। किसी घर में यदि कोई महिला या पुरुष अथवा बच्चा नहीं है तो निश्चित मानिए कि मकान का निर्माण वास्तुदोष से प्रभावित है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार आदर्श मकान की पहचान यह है कि उसके ईशान-नैऋत्य कोण पर 'कटिंग गेट' नहीं होना चाहिए लेकिन यदि ऐसा होता है तो मनुष्य के साथ कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती है।
सिंह ने कहा कि वास्तु से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों पर नियंत्रण किया जा सकता है। उत्पादन कार्य करने वाली मशीनों को भी यदि वास्तुशास्त्र के अनुसार रखा जाए तो उत्पादन और बिक्री पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

मंगलवार, 26 मई 2009

ईशान में बना शौचालय हानिकारक

सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र में न बनाएँ शौचालय
शौचालय बनाते वक्त काफी सावधानी रखना चाहिए, नहीं तो ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं और हमारे जीवन में शुभता की कमी आने से मन अशांत महसूस करता है।
इसमें आर्थिक बाधा का होना, उन्नति में रुकावट आना, घर में रोग घेरे रहना जैसी घटना घटती रहती है।
शौचालय को ऐसी जगह बनाएँ जहाँ से सकारात्मक ऊर्जा न आती हो व ऐसा स्थान चुनें जो खराब ऊर्जा वाला क्षेत्र हो।
घर के दरवाजे के सामने शौचालय का दरवाजा नहीं होना चाहिए, ऐसी स्थिति होने से उस घर में हानिकारक ऊर्जा का संचार होगा।
सोते वक्त शौचालय का द्वार आपके मुख की ओर नहीं होना चाहिए।
शौचालय अलग-अलग न बनवाते हुए एक के ऊपर एक होना चाहिए।
ईशान कोण में कभी भी शौचालय नहीं होना चाहिए, नहीं तो ऐसा शौचालय सदैव हानिकारक ही रहता है।
शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पश्चिम में हो या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। वैसे पश्चिम दिशा भी इसके लिए ठीक रहती है।
शौचालय का द्वार मंदिर, किचन आदि के सामने न खुलता हो। इस प्रकार हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर सकारात्मक ऊर्जा पा सकते हैं व नकारात्मक ऊर्जा से दूर रह सकते हैं।

सोमवार, 25 मई 2009

वास्तु अपनाएँ धन बढ़ाएँ

वास्तु अपनाएँ धन बढ़ाएँ
प्रत्येक व्यक्ति अपनी मेहनत से कमाए धन को सुरक्षित रखना तो चाहता ही है, साथ ही यह भी चाहता है कि उसमें दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी होती रहे। सामान्यतः हर व्यक्ति पैसे, आभूषण, मूल्यवान वस्तुएँ, कागजात वगैरह को सुरक्षित रखने के लिए तिजोरी, अलमारी, कैशबॉक्स इत्यादि का उपयोग करता है। इनमें धन सुरक्षित भी रहे और बढ़ता भी रहे। धन रखने के लिए उत्तर दिशा को सबसे शुभ माना गया है क्योंकि उत्तर दिशा का स्वामी धन का देवता कुबेर है।

* उत्तर दिशा : घर की इस दिशा में कैश व आभूषण जिस अलमारी में रखते हैं, वह अलमारी भवन की उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी, उसमें रखे गए पैसे और आभूषण में हमेशा वृद्धि होती रहेगी।
* ईशान कोण : यहाँ पैसा, धन और आभूषण रखे जाएँ तो यह दर्शाता है कि घर का मुखिया बुद्धिमान है और यदि यह उत्तर ईशान में रखे हों तो घर की एक कन्या संतान और यदि पूर्व ईशान में रखे हों तो एक पुत्र संतान बहुत बुद्धिमान और प्रसिद्ध है।
* पूर्व दिशा : यहाँ घर की संपत्ति और तिजोरी रखना बहुत शुभ होता है और उसमें बढ़ोतरी होती रहती है।
* आग्नेय कोण : यहाँ धन रखने से धन घटता है, क्योंकि घर के मुखिया की आमदनी घर के खर्चे से कम होने के कारण कर्ज की स्थिति बनी रहती है।
* दक्षिण दिशा : इस दिशा में धन, सोना, चाँदी और आभूषण रखने से नुकसान तो नहीं होता परंतु बढ़ोत्तरी भी विशेष नहीं होती है।
* नैऋत्य कोण : यहाँ धन, महँगा सामान और आभूषण रखे जाएँ तो वह टिकते जरूर है, किंतु एक बात अवश्य रहती है कि यह धन और सामान गलत ढंग से कमाया हुआ होता है।
* पश्चिम दिशा : यहाँ धन-संपत्ति और आभूषण रखे जाएँ तो साधारण ही शुभता का लाभ मिलता है। परंतु घर का मुखिया अपने स्त्री-पुरुष मित्रों का सहयोग होने के बाद भी बड़ी कठिनाई के साथ धन कमा पाता है।
* वायव्य कोण : यहाँ धन रखा हो तो खर्च जितनी आमदनी जुटा पाना मुश्किल होता है। ऐसे व्यक्ति का बजट हमेशा गड़बड़ाया रहता है और कर्जदारों से सताया जाता है।
घर की तिजोरी के पल्ले पर बैठी हुई लक्ष्मीजी की तस्वीर जिसमें दो हाथी सूंड उठाए नजर आते हैं, लगाना बड़ा शुभ होता है। तिजोरी वाले कमरे का रंग क्रीम या आफ व्हाइट रखना चाहिए।
सीढ़ियों के नीचे तिजोरी रखना शुभ नहीं होता है। सीढ़ियों या टायलेट के सामने भी तिजोरी नहीं रखना चाहिए। तिजोरी वाले कमरे में कबाड़ या मकड़ी के जाले होने से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जो परिवार की खुशहाली में बाधा उत्पन्न करती है।
घर के अंदर से देखने पर घर के आगे के भाग के दाएँ हाथ की खिड़की पर स्थित कमरे में घर के जेवर, गहने, सोने-चाँदी के सामान, लक्जरी आर्टिकल्स रखे जाते हों, उस घर की मालकिन को सुख-सुविधाएँ पसंद होती हैं और उसे बहुत खुशियाँ प्राप्त होती हैं। उसका पैसा बेमतलब की वस्तुओं पर खर्च होता है और स्वास्थ्य हमेशा नरम-गरम चलता रहता है।
यदि ड्राइंग हॉल को पति-पत्नी अपने बेडरूम की तरह उपयोग में लें और उसका कोई भाग घर के पैसे और गहने रखने के काम में आ रहा हो तो ऐसे घर की महिला बुद्धिमान, सुंदर, बातचीत से प्रभावित करने वाली होती है और घर का मुखिया व्यापार में जमीन-जायदाद में बहुत अच्छा पैसा सरलता से कमाता है और लग्जरी के सब सुख-साधनों का उपभोग करता है। पति पत्नी को प्यार करता है और दोस्तों से अच्छे संबंध रखता है, पत्नी भी बहुत बुद्धिमान और संवेदनशील रहती है। यदि हॉल के अंदर इस तरह लोहे की तिजोरी में पैसा रखा जाए तो यह मानिए की यह बहुत शुभ और अच्छा होता है।
घर के खाद्यान्न रखने के कमरे में यदि घर के गहने, पैसे, आभूषण, कपड़े इत्यादि रखे जाएँ या यह सामान रखने का ही एक भाग हो तो ऐसे लोग पैसे उधार देने का काम करते हैं या ऐसे लोग लग्जरी आइटम या बड़े सौदों का काम कर पैसा कमाते हैं।
फेंगशुई के अनुसार शयनकक्ष या तिजोरी वाले कमरे के प्रवेश द्वार के सामने वाली दीवार के बाएँ कोने में संपत्ति एवं भाग्य का क्षेत्र होता है। यह कोना कभी भी कटा हुआ नहीं होना चाहिए और यहाँ पर धातु की कोई चीज रखना या लटकाना धन वृद्धि में सहायक होता है।

बुधवार, 13 मई 2009

लाल किताब में वृक्षों का महत्व

हमारे यहाँ देव संस्कृति में प्रकृति को शक्ति रूप में पूजा जाता है। व्यक्ति जब प्रत्येक कार्य में प्रकृति के नियम का पालन करता है तब वह सुखी और आरोग्य रहता है। लाल किताब में वृक्षों का क्या महत्व है और जातक की कुंडली के अनुसार कौन-कौन-सा वृक्ष लाभकारी है या नहीं, इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।

लाल किताब में हर ग्रह किसी न किसी वृक्ष का कारक है और कुंडली में जो अच्छे ग्रह हैं उनके वृक्षों का घर के पास होना शुभ माना गया है। बृहस्पति ग्रह पीपल के वृक्ष का कारक है। यदि कुंडली में बृहस्पति शुभ हो और जिस भाव में बैठा है, मकान के उस हिस्से में या उस दिशा तरफ पीपल का वृक्ष लगाना शुभ फल देगा।

इस वृक्ष में कभी-कभी दूध डालते रहना चाहिए तथा उसके आसपास गंदगी नहीं रखना चाहिए। सूर्य तेज फल के वृक्ष का कारक है, जिस भाव में बैठा है, उस भाव की तरफ घर से बाहर या अंदर तेज फल का वृक्ष शुभ फलदायी होता है। शुक्र का कारक कपास का पौधा है और मनी प्लांट पौधा भी शुक्र का कारक है। कोई भी जमीन पर आगे बढ़ने वाली लेटी हुई बेल शुक्र की कारक है।
यदि शुक्र कुंडली में अच्छा है तो घर में मनी प्लांट लगाना अत्यधिक शुभ फलकारी है। आजकल के जमाने में घर अंदर से पूरी तरह पक्के होते हैं। इसलिए घर में शुक्र स्थापित नहीं होता है, क्योंकि शुक्र कच्ची जमीन का कारक है। इसलिए घर में कहीं भी कच्ची जमीन न हो तो मनी प्लांट लगाना शुभ फल का कारक है। मंगल नीम के पेड़ का कारक है, अतः भाव अनुसार नीम का पेड़ शुभ फल देगा।

केक्टस और किसी भी प्रकार के काँटे वाले पौधे घर में स्थापित करना शुभ नहीं होता है। केतु इमली का वृक्ष, तिल के पौधे तथा केले के फल का कारक है। यदि केतु खराब हो तो इन पौधों को घर के आसपास लगाना घर के मालिक के बेटे के लिए अशुभ फल का कारक हो जाता है, क्योंकि कुंडली में केतु हमारे बेटे को कारक भी है।

बुध का कारक केला या चौड़े पत्तों के वृक्ष है। शनि कीकर, आम और खजूर के वृक्ष का कारक है। इन वृक्षों को शुभ स्थिति में भी घर के आसपास स्थापित नहीं होने देना चाहिए। नारियल का पेड़ या आज के जमाने में केक्टस राहु के कारक हैं।

सोमवार, 11 मई 2009

दिशा अनुसार करें रंगों का प्रयोग
रंग जीवंतता के प्रतीक हैं। विभिन्न रंगों से प्रेम हमारी अलग-अलग मनोभावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। मानव जीवन पर उसके भवन की ऊर्जा का गहरा प्रभाव पड़ता है और इस ऊर्जा को संतुलित करने का विज्ञान है वास्तु शास्त्र।
किसी भी भवन में गृहस्वामी का शयनकक्ष तथा कारखानों, कार्यालयों में दक्षिण-पश्चिम भाग में जो भी कक्ष हो, वहाँ की दीवारों व फर्नीचर आदि का रंग हल्का गुलाबी अथवा नींबू जैसा पीला हो तो श्रेयस्कर रहता है।
गुलाबी रंग को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह आपसी सामंजस्य तथा सौहार्द में वृद्धि करता है। इस रंग के क्षेत्र में वास करने वाले जातकों की मनोभावनाओं पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। इस भाग में गहरे लाल तथा गहरे हरे रंगों का प्रयोग करने से जातक की मनोवृत्तियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम के भवन में हल्के स्लेटी रंग का प्रयोग करना उचित रहता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह भाग घर की अविवाहित कन्याओं के रहने या अतिथियों के ठहरने हेतु उचित माना जाता है। किसी कार्यालय के उत्तर-पश्चिम भाग में भी स्लेटी रंग का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
भवन के दक्षिण भाग में नारंगी रंग का प्रयोग करना उचित माना जाता है। इस रंग के प्रयोग से मन में स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है। इसके ठीक विपरीत इस भाग में यदि हल्के रंगों का प्रयोग किया जाता है तो सुस्ती एवं आलस्य की वृद्धि होती है। भवन में पूरब की ओर बने हुए कक्ष में सफेद रंग का प्रयोग किया जाना अच्छा रहता है। सफेद रंग सादगी एवं शांति का प्रतीक होता है।
इस स्थान पर चटख रंगों का प्रयोग करने से मन चंचल होगा। भवन में पश्चिम दिशा के कक्ष में नीले रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। ऐसा करने से वहाँ रहने वाले आज्ञाकारी और आदर देने वाले बने रहेंगे तथा उनके मन में अच्छी भावना बनी रहेगी।
नीला रंग नीलाकाश की विशालता, त्याग तथा अनंतता का प्रतीक है, वहाँ रहने वाले के मन में संकुचित या ओछे भाव उत्पन्न नहीं होंगे। वास्तु के उत्तर-पूर्वी भाग को हरे एवं नीले रंग के मिश्रण से रंगना अच्छा रहता है, यह स्थान जल तत्व का माना जाता है। इसलिए इस स्थान पर चटख रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। भवन में दक्षिण-पूर्व का भाग अग्नि तत्व का माना जाता है। इस स्थान की साज-सज्जा में पीले रंग का प्रयोग उचित होता है।
सही दिशा चुनें, खुशहाल रहे...
मानव जीवन में दिशाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन को सुखी एवं समृद्धिशाली बनाने में इनका स्थान सर्वोपरि है, अन्यथा सुख-शांति एवं सफलता प्राप्ति में कई अवरोधों का सामना करना पड़ता है। हमारा प्राच्य विज्ञान भी दिशाओं के महत्व को दर्शाता है।
जानिए जीवन में इनके क्रियाकलाप :
1*
जब शयन कक्ष में आप निद्रा ले रहे हैं, तो आपका मस्तिष्क दक्षिण दिशा में होना चाहिए। शयन कक्ष में झूठे बर्तन रखना अहितकर है।
2* मुख्य दरवाजा घर के अंदर से खुलना चाहिए तथा मुख्य दरवाजा दो पाटों का होना अत्यावश्यक है।
3* दवाइयाँ रखने का स्थान उत्तर दिशा में हितप्रद रहता है।
4* शौच पर जाते वक्त शौचकर्ता का मुँह पूर्व दिशा में कभी नहीं होना चाहिए।
5* अध्ययन करते समय पढ़ने वाले का चेहरा पूर्व दिशा में रहना चाहिए।
6* देवी-देवताओं का आराधना स्थल पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में होना चाहिए तथा पूजागृह यदि दक्षिण की ओर हो तो उसका विपरीत असर गिरता है।
7* कुआँ या बोरिंग ईशान, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना हितकारी है।
8* दक्षिण-पश्चिम दिशा की दीवारें पूर्व व उत्तर दिशा की दीवारों से बड़ी व मोटी होनी चाहिए।
9* भवन की जमीन का ढलान पूर्व व उत्तर दिशा की तरफ की होनी चाहिए।
10* दक्षिण-पश्चिम दिशा को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए, यह स्थल सर्वाधिक भारी रहना चाहिए।
11* स्नानागार पूर्व दिशा की ओर होकर उसके फर्श की ढलान उत्तर-पूर्व या ईशान कोण की ओर हो तथा रसोईघर दक्षिण-पूर्व दिशा के कोण में होना चाहिए।
12* सीढ़ियों के नीचे कभी भी तिजोरी नहीं रखनी चाहिए।
13* घर के सामने किसी मंदिर का प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए।
14* भोजन करते समय भोजनकर्ता का मुँह दक्षिण दिशा की ओर कतई नहीं होना चाहिए।
15* भवन में महाभारत या युद्ध के दृश्य वाली तस्वीर लगाना सर्वाधिक अनुचित है।
16* पूजा स्थल में बैठने हेतु ऊनी आसन का उपयोग करना चाहिए तथा रसोईघर में आराधना स्थल कतई निर्मित नहीं करें।
17* तहखाना (बेसमेंट) उत्तर व पूर्व दिशा में होना जरूरी है।
18* घर के सम्मुख कोई गड्ढा या द्वार भेद नहीं रहे अन्यथा अनेक विपदाएँ घर कर लेती हैं।
19* मेहमानों या आगंतुकों का आदर-सत्कार करते समय अपना मुँह उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें ताकि कोई अनिष्ट न हो।
इस प्रकार यह कहने में कोई संकोच नहीं कि दिशाओं के बलबूते पर चलने और कार्यारंभ करने पर आने वाले सभी अवरोधों से निजात मिल जाती है।
नया घर शुभ होगा या अशुभ
अंकों की सहायता से पहचाने उन्नतिदायक घर


नया घर बाँधने या नया फ्लैट लेने से पहले यह जान लेना नितांत जरूरी है कि वह घर आपके लिए उन्नतिकारक होगा या नहीं। इस हेतु घर की 'आय व व्यय' की गणना की जाती है।
आय की गणना :
घर का क्षेत्रफल निकालें। इस क्षेत्रफल को 8 से भाग दें। जो संख्‍या बाकी रहे उसे 'आय' समझना चाहिए। यदि बाकी रहे संख्‍या 1, 3, 5, 7 है तो घर आपके लिए सुख समृद्धि लाएगा मगर 0, 2, 4, 6, 8 हो तो घर अशुभ या धन की कमी करने वाला हो सकता है। ऐसे में घर के 'बिल्ट अप एरिया' में परिवर्तन करके शुभ आय स्थापित की जा सकती है।

व्यय की गणना :
घर के क्षेत्रफल को 8 से गुणा करके 27 से भाग दें। यह संख्‍या घर का गृह नक्षत्र बताएगी। इस संख्‍या को 8 से भाग देने पर शेष संख्‍या 'व्यय' कहलाएगी। यदि 'आय' की संख्‍या व्यय से अधिक है तो घर शुभ माना जाए, यदि आय-व्यय बराबर हों तो आय-व्यय से कम हो तो वह घर कदापि आपको उन्नति नहीं देगा। ऐसे घर में परिवर्तन करना नितांत आवश्यक होता है।

उदाहरण :
एक घर का क्षेत्रफल 997 वर्गफीट है। इसकी आय की गणना निम्नानुसार करेंगे।
997 भाग 8 शेष 7

7 विषम आय है जो शुभ है।
व्यय की गणना :
क्षेत्रफल - 997 वर्गफीट
997 गुणा 8 - 7976
7976 भाग 27
शेष - 11

यहाँ आय-व्यय को देखें तो व्यय-आय से अधिक है अत: घर धन व समृद्धिदायक नहीं रहेगा। घर बनाने से पहले इन सारी बातों का विचार करना आवश्यक है ताकि नया घर आपके जीवन में खुशियाँ ला सके।
घर कहाँ बनाएँ, कहाँ नहीं

प्लॉट खरीदने के बाद उस पर घर बनाते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। प्लॉट के चारों तरफ बने रास्ते, प्लॉट की लंबाई-चौड़ाई, प्लॉट पर लगे पेड़, प्लॉट पर बने कुएँ या कूप आदि सभी का ध्यान रखना चाहिए।
घर कहाँ न बनाए
: ब्रह्मदेव के मं‍दिर के पीछे या विष्णु, सूर्य, शिव या जैन मंदिर के सामने/पीछे बने प्लॉट पर घर न बनाएँ।
इसके अलावा प्लॉट पर घर बनाते समय उत्तर, पूर्व और ईशान में अधिक जगह छोड़े। घर की छत का उतार (ढलान) भी उत्तर या ईशान में हो। सीवेज, नल आदि भी ईशान या नैऋत्य में हो।

खिड़कियाँ पूर्व और उत्तर की तरफ ज्यादा हो। दक्षिण में खिड़क‍ी न बनाएँ। ईशान कोण में किचन भी न बनाएँ। आउट हाऊस हमेशा पश्चिम या दक्षिण में तथा गैरेज पूर्व या उत्तर में बनाएँ।

घर का दरवाजा :
मुख्य दरवाजा

* दरवाजे के सामने रास्ता न हो अन्यथा गृहस्वामी की उन्नति नहीं होगी।

* दरवाजे के सामने पेड़ होने से बच्चे बीमार रहते है।

* दरवाजे के सामने पानी बहता रहे तो धन हानि होती है।

* दरवाजे के सामने मंदिर हो तो घर में कभी सुख नहीं मिलता।

* स्तंभ (खंभे) के सामने दरवाजा हो तो स्त्री हानि होती है।

* यदि मुख्य दरवाजा एक हो (मुख्य द्वार) तो हमेशा पूर्व में रखें। यदि दो दरवाजों का प्रवेश हो तो पूर्व व पश्चिम में बनाएँ।

* जमीन की तुलना में यदि दरवाजा नीचा हो तो घर के पुरुष व्यसनासिक्त व दु:खी रहते हैं।

* घर के आगे वीथिशूल हो (रास्ता, मंदिर आदि) तो घर की ऊँचाई से दोगुनी जगह आगे छोड़ने से दोष नहीं लगता।

* यदि कोई रास्ता आपके घर या इमारत से आड़ा होकर निकले या इमारत तक आकर समाप्त हो तो यह शुभ होता है।

* घर का मुख्य द्वार हमेशा अन्य दरवाजों से बड़ा होना चाहिए।
प्लॉट खरीदने जा रहे हैं
तो जरा रुकिए

प्लॉट लेकर घर बनाना हरेक का स्वप्न होता है। यदि प्लॉट लेते समय वास्तु के नियमों का पालन न किया गया, तो वास्तु के अनुरूप घर बनाने के बाद भी परेशानी आ सकती है।

प्लॉट कब शुभ होता है

1. पूर्व व आग्नेय दिशा ऊँची और पश्चिम व वायव्य नीची या दक्षिण व आग्नेय ऊँची तथा पश्चिम व उत्तर नीची हो, बीच में ऊँची और बाकी दिशाएँ नीची हों।

2. पश्चिम दिशा ऊँची और ईशान व पूर्व नीची हों या आग्नेय दिशा ऊँची और नैऋत्य व उत्तर दिशा में उतार हो।

3.
उत्तर दिशा ऊँची और आग्नेय, नैऋत्य व वायव्य दिशा नीची हों या नैऋत्य व आग्नेय ऊँची तथा उत्तर दिशा नीची हो।

4. आयताकार या वर्गाकार प्लाट शुभ होता है।

5 पूर्व-पश्चिम लंबाई कम व दक्षिणोत्तर लंबाई अधिक होना चाहिए।

6. गोमुखाकार और लंबे गोलाकार प्लॉट अत्यंत शुभ माने जाते हैं।

प्लॉट कब होता है अशुभ
1.
जब ईशान का कोना कटा हुआ हो।

2. दो बड़े प्लॉट के बीच फँसा छोटा प्लॉट हो।

3. यदि प्लॉट का मुख (घर का द्वार) पूर्व-आग्नेय, नैऋत्य या वायव्य में हो।

4. प्लॉट में पथरीली जमीन या बड़े-बड़े गड्ढे हों।

5. यदि ईशान कोण गोलाई में आता हो।

6. दक्षिण में उतार हो, उत्तर ऊँचा हो।

7. यदि पड़ोस के प्लॉट में उतार हो (ढलान हो)

8. उत्तर-पूर्व ऊँची और पश्चिम में ढलान हो तो प्लॉट खरीदना अशुभ फल देता है।

गुरुवार, 7 मई 2009

वास्तुशास्त्र-एक परिचय
स्वास्थ्य, खुशहाली, सुख-चैन के साथ सफल जीवन जीने की प्राथमिकता के अलावा कुदरत में पर्यावरण के संतुलन बनाए रखने की भारतीय संस्कृति सदियों से चली आ रही है। इंसान ने जमीन पर मकान, मंदिर, मूर्तियाँ, किले, महल आदि का निर्माण किया, जिसने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की जिम्मेदारी का पूरा-पूरा ध्यान रखा। किन्तु इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सूत्र है अंतरिक्ष में हमेशा बने रहने वाले ग्रह नक्षत्र और इस ज्ञान की गंगा को ज्योतिष के नाम से जाना गया।
ब्रह्याण्ड में संचार करती हुई ऊर्जा अर्थात्‌ 'कास्मिक एनर्जी वास्तुशास्त्र में विशेष महत्व है। किसी भी भवन निर्माण आदि के लिए जमीन के सही चुनाव, निर्माण कार्य, इंटीरियर डेकोरेशन आदि कामों में दिशाओं, पाँच महाभूत तत्वों, पृथ्वी, जल, वायु, तेज या अग्नि तथा आकाश विद्युत चुम्बकीय तरंगों, गुरुत्वाकर्षण, कॉस्मिक एनर्जी तथा दिशाओं की डिग्रियों या अंशों का सुनियोजित ढंग से इस्तेमाल वास्तुकला द्वारा किया जाता है।
ज्योतिष का एक हिस्सा जो भवन निर्माण से संबंध रखता है, वास्तुशास्त्र के नाम से जाना जाता है। दूसरे शब्दों में ब्रह्माण्ड में हमेशा उपस्थित रहने वाली हुई कॉस्मिक ऊर्जा तथा पाँच महाभूत तत्वों का समायोजन वास्तुकला में जिस विद्या द्वारा होता है, वह वास्तुशास्त्र कहलाती है।
अधिकतर वास्तुकला के शौकीन दिशाओं का अंदाज सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर, मैगनेटिक कम्पास के बिना करते हैं, जबकि इस यंत्र के बिना वास्तु कार्य नहीं करना चाहिए। दिशाओं के सूक्ष्म अंशों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अतः जरूरी रिनोवेशन या निर्माण कार्य, अच्छे जानकार वास्तुशास्त्री की देखरेख में ही करवाना ठीक होता है।
ज्योतिष का एक हिस्सा जो भवन निर्माण से संबंध रखता है, वास्तुशास्त्र के नाम से जाना जाता है। दूसरे शब्दों में ब्रह्माण्ड में हमेशा उपस्थित रहने वाली हुई कॉस्मिक ऊर्जा तथा पाँच महाभूत तत्वों का समायोजन वास्तुकला में जिस विद्या द्वारा होता है।
आम धारणा है कि दक्षिण व पश्चिम दिशाएँ अच्छा असर नहीं डालती हैं या अशुभ प्रभाव रखती हैं। मगर सच्चाई कुछ और है। हर एक दिशा में खास अंश होते हैं, जो अच्छा प्रभाव डालते हैं। जैसे 135 से 180 अंश दक्षिण दिशा में, 270 से 310 अंश पश्चिम दिशा में अच्छा प्रभाव रखते हैं। अतः दिशाओं के प्रति पूर्वाग्रह न रखते हुए उनके शुभ अंशा से लाभ उठाने की संभावनाओं का ज्ञान जरूरी है।
दक्षिण पश्चिम दिशा में उत्तर-पूर्व के मुकाबले में खुली जगह कम से कम होनी चाहिए। मुख्य दरवाजा किसी भी दिशा में हो उत्तर-पूर्व वाला भाग दक्षिण-पश्चिम के मुकाबले में खुला, हल्का और साफ-सुथरा होना चाहिए।
दूसरे शब्दों में दक्षिण-पश्चिम वाला हिस्सा ऊँचा, भारी, ज्यादा घिरा हुआ होना चाहिए। साथ ही फर्श की सतह का ढलान इस तरह से नीचा होना चाहिए कि पानी का बहाव दक्षिण से उत्तर या पश्चिम से पूर्व की ओर होना चाहिए। बाउंड्री वॉल भी बिलकुल इसी तरह उत्तर और पूर्व में नीची एवं तुलनात्मक रूप से कम मोटी होनी चाहिए।
उत्तर दिशा पानी संबंधी बातों से ताल्लुक रखती है, इसीलिए उत्तर-पूर्व में जल संबंधी बातों का प्रावधान रखा गया है, कारण सूर्य की चमत्कारी किरणों का भरपूर इस्तेमाल। एक वैदिक ऋचा में कहा गया है... हे सूर्य देवता...। अपनी किरणों द्वारा हमारे हृदय और फेफड़ों के अंदर के कीटाणुओं का नाश करिए। उत्तर-पूर्व दिशा के बड़े खिड़की दरवाजों को और खुली जगह को इसीलिए इतना महत्व दिया गया है कि कॉस्मिक-एनर्जी के साथ अल्ट्रा-वॉयलेट किरणों की संतुलित मात्रा में आवाजाही हो सके। पूर्व दिशा को खास तौर पर एकदम सुबह के उगते हुए सूर्य की अल्ट्रावॉइलेट किरणों के असर की वजह से महत्वपूर्ण बतलाया गया है। हिंदुस्तानी रहन सहन के तौर-तरीकों में इसीलिए ब्रह्ममुहूर्त को इतना महत्व दिया जाता है।
जमीन के नीचे पानी के टैंक, स्विमिंग पूल, कुआँ, बावड़ी, बोरवैल की व्यवस्था का उपरोक्त दिशा में प्रावधान का मुख्य उद्देश्य हाइजीन है। सोने के कमरे का दरवाजा ऐसी जगह पर न बनवाएँ कि बाहर से आते-जाते लोगों की नजर उस कमरे में सोने या आराम करने वालों पर पड़े। ड्राइंग-रूम में सोफज कम बैड का प्रयोग यथासंभव कम से कम करें।
रसोई की सबसे बेहतरीन जगह दक्षिण-पूर्व है, दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम दिशा में है। अगर दाम्पत्य जीवन के तालमेल में कमी के संकेत मिलते हों तो रसोई तथा शयन कक्ष की वास्तु योजना पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए। रसोई की दीवारों का पेंट आदि का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है। रसोई घर में पूजाघर या देवताओं की मूर्ति जैसी चीजें न रखें।
खिड़की, दरवाजे और मुख्य रूप से मेन-गेट पर काला पेंट हो तो परिवार के सदस्यों के व्यवहार में अशिष्टता, गुस्सा, बदजुबानी आदि बढ़ जाते हैं। घर के जिस भी सदस्य की जन्मपत्रिका में वाणी स्थान व संबंधित ग्रह-नक्षत्र शनि, राहु मंगल और केतु आदि से प्रभावित हों, उस पर उक्त प्रभाव विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता हो। मंगल व केतु का प्रभाव हो तो लाल पेंट कुतर्क, अधिक बहस, झगड़ालू और व्यंगात्मक भाषा इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति की तरफ इशारा करता है। ऐसे हालात में सफेद रंग का प्रयोग लाभदायक होता है।
रसोई की सबसे बेहतरीन जगह दक्षिण-पूर्व है, दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम दिशा में है। अगर दाम्पत्य जीवन के तालमेल में कमी के संकेत मिलते हों तो रसोई तथा शयन कक्ष की वास्तु योजना पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए।
अग्नि तत्व या रसोई से संबंध रखने वाली वस्तुओं की सबसे अच्छी व्यवस्था दक्षिण-पूर्व में ही होती है। टेलीविजन, कम्प्यूटर, हीट-कन्वेटर या अन्य ऐसे उपकरण जो एक भवन में सभी या अधिक स्थानों पर हो सकते हैं या ऐसे दूसरे विद्युत उपकरण, जब विभिन्न कमरों में रखने हों तो दिशा ज्ञान प्रत्येक कमरे पर प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए उत्तर-पूर्व में स्थित किसी कमरे में विद्यार्थी के कम्प्यूटर का उचित स्थान उस कमरे के दक्षिण-पूर्व में होगा। इसी तरह रसोई का सबसे बेहतर स्थान दक्षिण-पूर्व में, दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम दिशा में है, किन्तु रसोई के खर्चों तथा मानसिक चिंताओं में बेवजह वृद्धि हो जाती है। यदि जन्मकालीन ग्रह-नक्षत्र मंगल दोष दाम्पत्य जीवन के असामंजस्य के संकेत देता हो और ऐसे अनुभव भी हो रहे हों तो अन्य कारणों के साथ किचन तथा बैडरूम के वास्तु पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए।
रसोई में कुकिंग रेंज पूर्व में ऐसे रखें कि खाना बनाने वाले के सामने पूर्व दिशा पड़े। फूज्ड प्रोसेसर, माइक्रोवन, फ्रिज इत्यादि की व्यवस्था दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए। पानी संबंधी कार्य जैसे वाटर फिल्टर, डिशवाशर, बर्तन धोने का सिंक आदि उत्तर-पूर्व वाले भाग में होने चाहिए। पूर्व की दीवार में वॉल कैबिनेट न हों तो बेहतर है यदि जरूरी हो तो यहाँ भारी सामान न रखें। खाने-पीने का सामान उत्तर-पश्चिम दिशा में या रसोईघर के उत्तर-पश्चिम भाग में स्टोर करें जिस दरवाजे से अधिक आना जाना हो या मुख्य द्वार यदि रसोईघर के ठीक सामने हो साथ ही पति पत्नी के ग्रह-नक्षत्र कलह का इशारा देते हैं तो बेहतर होगा कि दरवाजों की जगह बदलवाएँ वरना उक्त परिस्थितियाँ आग में घी का काम करती हैं।
वास्तुशास्त्र में वेध काफी महत्व रखता है। यह बाधा या रूकावट के संकेत देता है। भवन अथवा मुख्य द्वार के सामने अगर पेड़, खंभा, बड़ा पत्थर आदि या जनता द्वारा प्रयोग होने वाले मार्ग का अंत होता है तो उसका विपरीत असर पड़ता है। जब वेध व भवन के बीचों-बीच ऐसी सड़क हो जिसमें आम रास्ता हो तो वेध का प्रभाव पूरी तरह तो नहीं मगर बहुत कुछ कम हो जाता है। घर पर भी किसी कमरे के दरवाजे के सामने कोई वस्तु मसलन जसे सोने के कमरे के सामने ऐसी सजावटी वस्तुएँ तनाव और चिंताओं के कारण या नींद में बाधक हो सकती है।
भवन के बीचों-बीच का हिस्सा ब्रह्म स्थान कहा जाता है। इसे खाली रखा जाना चाहिए। जैसे फर्नीचर या कोई भारी सामान यहाँ पर सेहत व मानसिक शांति को प्रभावित करते हैं। ब्रह्मस्थान वाले क्षेत्र में छत में भारी झाड़ फानूस भी नहीं लटकाएँ जाएँ। इस हिस्से में पानी की निकासी के लिए नालियों की व्यवस्था का निषेध है, यह आर्थिक नुकसान का संकेतक है।
घर, कार्यालय या संस्था के मुखिया आदि के बैठने, काम करने या सोने की जगह दक्षिण-पश्चिम में बहुत अच्छी मानी गई है। ऐसी स्थिति में उनका अपन से छोटे सदस्यों, बच्चों तथा कर्मचारियों, प्रबंधकों आदि पर बेहतर नियंत्रण रहता है। घर पर मेहमान या आफिस में मुलाकात करने वालों के बैठने का इंतजाम कुछ इस तरह होना चाहिए कि उनका मुँह दक्षिण या पश्चिम की ओर होना चाहिए तथा गृहस्वामी या वरिष्ठ अधिकारी उत्तर या पूर्व की ओर मुँह करते हुए बैठें। बच्चे यदि माता-पिता के अनुशासन में न हों और उनके लिए चिंता का कारक हों तो उत्तर-पूर्व दिशा में बच्चों के सोने व पढ़ने की व्यवस्था करें। टेलीफोन, फैक्स का उचित स्थान उत्तर-पूर्व दिशा में है।
वास्तुशास्त्र के साथ ज्योतिष का ज्ञान होना आवश्यक है। आजकल ज्योतिष और वास्तुशास्त्र एक आकर्षक व्यवसाय के रूप में उभर कर आ रहे हैं। अधकचरे वास्तुशास्त्री अजीबो-गरीब उपाय बतलाते हैं। अतः वास्तुशास्त्री का चुनाव सावधानी से करिए। लोगों की परेशानियों से आनन-फानन छुटकारा दिलवाने का बढ़-चढ़कर दावा करने वालों से हमेशा सावधान रहें।
वास्तुशास्त्र का प्रयोग ज्योतिष को ध्यान में रखते हुए करना अधिक लाभदायक होता है। यह ध्यान रखें कि जीवन सुख-दुःख का मिश्रण है, अतः अंधविश्वास, धर्म, आदि से हटकर इन विधाओं का वैज्ञानिक पक्ष पहचानना सीखें।

वास्तुशास्त्र संबंधी सामान्य नियम
आजकल वास्तुशास्त्र का बोलबाला है। एक सामान्य से घर को वास्तु के इतने जटिल नियमों में बाँध दिया जाता है कि जिन्हें पढ़कर मनुष्य न केवल भ्रमित हो जाता है वरन जिनके घर पूर्णत: वास्तु अनुसार नहीं होते, वे शंकाओं के घेरे में आ जाते हैं। ऐसे मनुष्य या तो अपना घर बदलना चाहते हैं या शंकित मन से घर में निवास करते हैं।
वास्तु विज्ञान का स्पष्ट अर्थ है चारों दिशाओं से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों का संतुलन...। यदि ये तरंगें संतुलित रूप से आपको प्राप्त हो रही हैं, तो घर में स्वास्थ्य व शांति बनी रहेगी। अत: ढेरों वर्जनाओं में बँधने के बजाय दिशाओं को संत‍ुलित करें तो लाभ मिल सकता है। निम्न निर्देशों का ध्यान रखें-

1. किचन दक्षिण-पूर्व में, मास्टर बैडरूम दक्षिण-पश्चिम में, बच्चों का बैडरूम उत्तर-पश्चिम में और शौचालय आदि दक्षिण में हों।

2. पानी की निकासी उत्तर में हो, ईशान (उत्तर-पूर्व) खुला हो, दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी सामान हो।

3. मुख्य दरवाजा अन्य दरवाजों से बड़ा और भारी हो।

4. खि‍ड़कियाँ व दरवाजे सम संख्या में हों व पूर्व या उत्तर में खुलें।

5. तीन दरवाजे एक सीध में न हों, दरवाजे बंद करते या खोलते समय आवाज न हो।

6. पूजा के लिए ईशान कोण हो या भगवान का मुख ईशान में हो।

7. उत्तर या पूर्व में तुलसी का पौधा लगाएँ।

8. पूर्वजों के फोटो पूजाघर में न रखें, दक्षिण की दीवार पर लगाएँ।

9. शाम को घर में सांध्यदीप जलाएँ। आरती करें।

10. इष्टदेव का ध्यान और पूजन अवश्य करें।

11. भोजन के बाद जूठी थाली लेकर अधिक देर तक न बैठें। न ही जूठे बर्तन देर तक सिंक में रखें।

12. अपनी आय का एक हिस्सा इष्टदेव के नाम पर अलग रखें। घर में हमेशा समृद्धि बनी रहेगी।

घर का मुख्य द्वार किस दिशा में हो, यह भी चिंता का विषय रहता है। अधिकतर दक्षिण व पश्चिम द्वार को शुभ नहीं माना जाता मगर यह तय ‍करने के लिए जन्म पत्रिका का अध्ययन जरूरी है। कुछ राशियों के लोगों के लिए ये द्वार बेहद शुभ फल देते हैं विशेषकर जिन लोगों की कुंडली में शनि-मंगल शुभ कारक ग्रह होते हैं। अत: हर दृ‍ष्टि से विचार करके वास्तु संबंधी बातें तय की जाएँ तो घर में सर्वत्र सुख-शांति का वास रह सकता है।