मंगलवार, 23 जून 2009

वास्तु में दिशा का महत्व

वास्तु में दिशा का महत्व

वास्तुशास्त्र, जिसे वेदों में स्थापत्य वेद कहा गया है, में हमें भवन निर्माण संबंधी नियमों का वर्णन मिलता है। वे भवन विशाल मंदिर, राजमहल, सार्वजनिक स्थल या घर हो सकते हैं। घर का निर्माण इस प्रकार हो कि उसमें निवास करने वाले व्यक्तियों को प्रकृति की पोषणकारी शक्ति प्राप्त हो ताकि वे निरोगी रहते हुए बिना बाधा के उत्तरोत्तर विकास करते हुए सफलता प्राप्त कर सकें।

इस लेख के माध्यम से हम दिशा व उसके प्रभाव का अध्ययन करेंगे। जैसा कि हम सब जानते हैं कि ग्रह नौ हैं। ये ग्रह विभिन्न दिशाओं के स्वामी हैं।

सूर्यः सितो भूमिसुतोऽदय राहुः शनिः शशीज्ञश्च बृहस्पतिश्चप्राच्यादितोदिक्षुविदिक्षुचापिदिशामधीशाः क्रमतः प्रदिष्टा ॥49॥11॥ मुहूर्त चिंतामणि॥

पूर्व दिशा का स्वामी सूर्य है। इस दिशा में भवन शास्त्र के अनुसार उचित प्रकार से बना हो, इस दिशा का विकिरण घर में आता हो, कोई दोष नहीं हो तो उस घर में निवास करने वाले व्यक्तियों को उत्तम स्वास्थ्य, धन-धान्य की प्राप्ति होती है। निर्माण दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति इनसे वंचित रहता है। रोगी होने की आशंका अधिक रहती है।

अग्निकोण का स्वामी शुक्र ग्रह है, यह ग्रह भौतिक सुख व भौतिक उन्नति देता है। यह दिशा शास्त्रानुसार होने पर धन, प्रसिद्धि, भौतिक सुख, इच्छाओं की पूर्ति सुगमता से होती है। घर के इस भाग में गंदगी, कचरा-कूड़ा, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए। इसे लक्ष्मी का स्थान भी कहा गया है।

घर के दक्षिण की दिशा मंगल की है, इसका सबसे अधिक प्रभाव गृहस्वामी पर होता है, उसकी स्वास्थ्य व प्रगति मुख्यतः इसी दिशा पर आधारित है।

पूर्व दिशा का स्वामी सूर्य है। इस दिशा में भवन शास्त्र के अनुसार उचित प्रकार से बना हो, इस दिशा का विकिरण घर में आता हो, कोई दोष नहीं हो तो उस घर में निवास करने वाले व्यक्तियों को उत्तम स्वास्थ्य, धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

नैऋत्य दिशा राहु की है। यह दोषपूर्ण होने पर कलह कराती है तथा पितृ का स्थान होने से वंशवृद्धि को प्रभावित करती है।
पश्चिम दिशा का स्वामी शनि है। इसका प्रभाव बंधु, पुत्र, धान्य तथा उत्कृष्ट उन्नति पर अधिक होता है।
पश्चिमोत्तर दिशा का स्वामी चंद्रमा है। चंद्रमा चंचलता का, मन का, गति का प्रतीक है। यह दिशा नौकर, वाहन, गमन तथा पुत्र को प्रभावित करती है।
उत्तर दिशा का स्वामी बुध है। यह दिशा विजय, धन व वृद्धि को प्रभावित करती है।
पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी बृहस्पति है। घर का यह भाग साफ-सुथरा तथा अनुकूल होने पर सभी कामनाओं की पूर्ति करते हुए आनंद देता है।

इस प्रकार से हम देखते हैं कि घर का प्रत्येक हिस्सा महत्वपूर्ण है तथा अलग-अलग दिशा अलग-अलग बातों को विशेष रूप से प्रभावित करती है। इसलिए घर का प्रत्येक भाग उचित रूप से बना होना चाहिए। पूर्व तथा उत्तर की किरणें घर में सीधे प्रवेश करें तो उसमें निवास करने वाले उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए लक्ष्य प्राप्त करते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

बुधवार, 10 जून 2009

घर बनाना कब प्रारंभ करें?

शुक्ल पक्ष में करें गृह निर्माण

वास्तु शास्त्र में प्राचीन मनीषियों ने सूर्य के विविध राशियों पर भ्रमण के आधार पर उस माह में घर निर्माण प्रारंभ करने के फलों की ‍विवेचना की है।

1. मेष राशि में सूर्य होने पर घर बनाना प्रारंभ करना अति लाभदायक होता है।

2. वृषभ र‍ाशि में सूर्य : संपत्ति बढ़ना, आर्थिक लाभ

3. मिथुन राशि में सूर्य : गृह स्वामी को कष्ट

4. कर्क राशि में सूर्य : धन-धान्य में वृद्धि

5. सिंह राशि का सूर्य : यश, सेवकों का सुख

6. कन्या राशि का सूर्य : रोग, बीमारी आना

7. तुला राशि का सूर्य : सौख्‍य, सुखदायक

8. वृश्चिक राशि का सूर्य : धन लाभ

9. धनु राशि का सूर्य : भरपूर हानि, विनाश

10. मकर राशि का सूर्य : धन, संपत्ति वृद्धि

11. कुंभ राशि का सूर्य : रत्न, धातु लाभ
12. मीन राशि का सूर्य : चौतरफा नुकसान

घर बनाने का प्रारंभ हमेशा शुक्ल पक्ष में करना चाहिए। फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रवण और ‍कार्तिक माहों में शुरू किया गया गृह निर्माण उत्तम फल देता है।

वर्जित क्या करें :
मंगलवार व रविवार, प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या तिथियाँ, जेष्ठा रेवती, मूल नक्षत्र, वज्र, व्याघात, शूल, व्यतिपात, गंड, विषकुंभ, परिध, अतिगंड, योग - इनमें घर का निर्माण या कोई जीर्णोद्धार भूलकर भी नहीं करना चाहिए अन्यथा घर फलदायक नहीं होता।

अति शुभ योग :
शनिवार, स्वाति, नक्षत्र सिंह लग्न, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग और श्रावण मास ये सभी यदि एक ही दिन उपलब्ध हो सके, तो ऐसा घर दैवी आनंद व सुखों की अनुभूति कराने वाला होता है।