गुरुवार, 7 मई 2009

वास्तुशास्त्र-एक परिचय
स्वास्थ्य, खुशहाली, सुख-चैन के साथ सफल जीवन जीने की प्राथमिकता के अलावा कुदरत में पर्यावरण के संतुलन बनाए रखने की भारतीय संस्कृति सदियों से चली आ रही है। इंसान ने जमीन पर मकान, मंदिर, मूर्तियाँ, किले, महल आदि का निर्माण किया, जिसने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की जिम्मेदारी का पूरा-पूरा ध्यान रखा। किन्तु इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सूत्र है अंतरिक्ष में हमेशा बने रहने वाले ग्रह नक्षत्र और इस ज्ञान की गंगा को ज्योतिष के नाम से जाना गया।
ब्रह्याण्ड में संचार करती हुई ऊर्जा अर्थात्‌ 'कास्मिक एनर्जी वास्तुशास्त्र में विशेष महत्व है। किसी भी भवन निर्माण आदि के लिए जमीन के सही चुनाव, निर्माण कार्य, इंटीरियर डेकोरेशन आदि कामों में दिशाओं, पाँच महाभूत तत्वों, पृथ्वी, जल, वायु, तेज या अग्नि तथा आकाश विद्युत चुम्बकीय तरंगों, गुरुत्वाकर्षण, कॉस्मिक एनर्जी तथा दिशाओं की डिग्रियों या अंशों का सुनियोजित ढंग से इस्तेमाल वास्तुकला द्वारा किया जाता है।
ज्योतिष का एक हिस्सा जो भवन निर्माण से संबंध रखता है, वास्तुशास्त्र के नाम से जाना जाता है। दूसरे शब्दों में ब्रह्माण्ड में हमेशा उपस्थित रहने वाली हुई कॉस्मिक ऊर्जा तथा पाँच महाभूत तत्वों का समायोजन वास्तुकला में जिस विद्या द्वारा होता है, वह वास्तुशास्त्र कहलाती है।
अधिकतर वास्तुकला के शौकीन दिशाओं का अंदाज सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर, मैगनेटिक कम्पास के बिना करते हैं, जबकि इस यंत्र के बिना वास्तु कार्य नहीं करना चाहिए। दिशाओं के सूक्ष्म अंशों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अतः जरूरी रिनोवेशन या निर्माण कार्य, अच्छे जानकार वास्तुशास्त्री की देखरेख में ही करवाना ठीक होता है।
ज्योतिष का एक हिस्सा जो भवन निर्माण से संबंध रखता है, वास्तुशास्त्र के नाम से जाना जाता है। दूसरे शब्दों में ब्रह्माण्ड में हमेशा उपस्थित रहने वाली हुई कॉस्मिक ऊर्जा तथा पाँच महाभूत तत्वों का समायोजन वास्तुकला में जिस विद्या द्वारा होता है।
आम धारणा है कि दक्षिण व पश्चिम दिशाएँ अच्छा असर नहीं डालती हैं या अशुभ प्रभाव रखती हैं। मगर सच्चाई कुछ और है। हर एक दिशा में खास अंश होते हैं, जो अच्छा प्रभाव डालते हैं। जैसे 135 से 180 अंश दक्षिण दिशा में, 270 से 310 अंश पश्चिम दिशा में अच्छा प्रभाव रखते हैं। अतः दिशाओं के प्रति पूर्वाग्रह न रखते हुए उनके शुभ अंशा से लाभ उठाने की संभावनाओं का ज्ञान जरूरी है।
दक्षिण पश्चिम दिशा में उत्तर-पूर्व के मुकाबले में खुली जगह कम से कम होनी चाहिए। मुख्य दरवाजा किसी भी दिशा में हो उत्तर-पूर्व वाला भाग दक्षिण-पश्चिम के मुकाबले में खुला, हल्का और साफ-सुथरा होना चाहिए।
दूसरे शब्दों में दक्षिण-पश्चिम वाला हिस्सा ऊँचा, भारी, ज्यादा घिरा हुआ होना चाहिए। साथ ही फर्श की सतह का ढलान इस तरह से नीचा होना चाहिए कि पानी का बहाव दक्षिण से उत्तर या पश्चिम से पूर्व की ओर होना चाहिए। बाउंड्री वॉल भी बिलकुल इसी तरह उत्तर और पूर्व में नीची एवं तुलनात्मक रूप से कम मोटी होनी चाहिए।
उत्तर दिशा पानी संबंधी बातों से ताल्लुक रखती है, इसीलिए उत्तर-पूर्व में जल संबंधी बातों का प्रावधान रखा गया है, कारण सूर्य की चमत्कारी किरणों का भरपूर इस्तेमाल। एक वैदिक ऋचा में कहा गया है... हे सूर्य देवता...। अपनी किरणों द्वारा हमारे हृदय और फेफड़ों के अंदर के कीटाणुओं का नाश करिए। उत्तर-पूर्व दिशा के बड़े खिड़की दरवाजों को और खुली जगह को इसीलिए इतना महत्व दिया गया है कि कॉस्मिक-एनर्जी के साथ अल्ट्रा-वॉयलेट किरणों की संतुलित मात्रा में आवाजाही हो सके। पूर्व दिशा को खास तौर पर एकदम सुबह के उगते हुए सूर्य की अल्ट्रावॉइलेट किरणों के असर की वजह से महत्वपूर्ण बतलाया गया है। हिंदुस्तानी रहन सहन के तौर-तरीकों में इसीलिए ब्रह्ममुहूर्त को इतना महत्व दिया जाता है।
जमीन के नीचे पानी के टैंक, स्विमिंग पूल, कुआँ, बावड़ी, बोरवैल की व्यवस्था का उपरोक्त दिशा में प्रावधान का मुख्य उद्देश्य हाइजीन है। सोने के कमरे का दरवाजा ऐसी जगह पर न बनवाएँ कि बाहर से आते-जाते लोगों की नजर उस कमरे में सोने या आराम करने वालों पर पड़े। ड्राइंग-रूम में सोफज कम बैड का प्रयोग यथासंभव कम से कम करें।
रसोई की सबसे बेहतरीन जगह दक्षिण-पूर्व है, दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम दिशा में है। अगर दाम्पत्य जीवन के तालमेल में कमी के संकेत मिलते हों तो रसोई तथा शयन कक्ष की वास्तु योजना पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए। रसोई की दीवारों का पेंट आदि का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है। रसोई घर में पूजाघर या देवताओं की मूर्ति जैसी चीजें न रखें।
खिड़की, दरवाजे और मुख्य रूप से मेन-गेट पर काला पेंट हो तो परिवार के सदस्यों के व्यवहार में अशिष्टता, गुस्सा, बदजुबानी आदि बढ़ जाते हैं। घर के जिस भी सदस्य की जन्मपत्रिका में वाणी स्थान व संबंधित ग्रह-नक्षत्र शनि, राहु मंगल और केतु आदि से प्रभावित हों, उस पर उक्त प्रभाव विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता हो। मंगल व केतु का प्रभाव हो तो लाल पेंट कुतर्क, अधिक बहस, झगड़ालू और व्यंगात्मक भाषा इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति की तरफ इशारा करता है। ऐसे हालात में सफेद रंग का प्रयोग लाभदायक होता है।
रसोई की सबसे बेहतरीन जगह दक्षिण-पूर्व है, दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम दिशा में है। अगर दाम्पत्य जीवन के तालमेल में कमी के संकेत मिलते हों तो रसोई तथा शयन कक्ष की वास्तु योजना पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए।
अग्नि तत्व या रसोई से संबंध रखने वाली वस्तुओं की सबसे अच्छी व्यवस्था दक्षिण-पूर्व में ही होती है। टेलीविजन, कम्प्यूटर, हीट-कन्वेटर या अन्य ऐसे उपकरण जो एक भवन में सभी या अधिक स्थानों पर हो सकते हैं या ऐसे दूसरे विद्युत उपकरण, जब विभिन्न कमरों में रखने हों तो दिशा ज्ञान प्रत्येक कमरे पर प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए उत्तर-पूर्व में स्थित किसी कमरे में विद्यार्थी के कम्प्यूटर का उचित स्थान उस कमरे के दक्षिण-पूर्व में होगा। इसी तरह रसोई का सबसे बेहतर स्थान दक्षिण-पूर्व में, दूसरा विकल्प उत्तर-पश्चिम दिशा में है, किन्तु रसोई के खर्चों तथा मानसिक चिंताओं में बेवजह वृद्धि हो जाती है। यदि जन्मकालीन ग्रह-नक्षत्र मंगल दोष दाम्पत्य जीवन के असामंजस्य के संकेत देता हो और ऐसे अनुभव भी हो रहे हों तो अन्य कारणों के साथ किचन तथा बैडरूम के वास्तु पर खास तौर पर ध्यान देना चाहिए।
रसोई में कुकिंग रेंज पूर्व में ऐसे रखें कि खाना बनाने वाले के सामने पूर्व दिशा पड़े। फूज्ड प्रोसेसर, माइक्रोवन, फ्रिज इत्यादि की व्यवस्था दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए। पानी संबंधी कार्य जैसे वाटर फिल्टर, डिशवाशर, बर्तन धोने का सिंक आदि उत्तर-पूर्व वाले भाग में होने चाहिए। पूर्व की दीवार में वॉल कैबिनेट न हों तो बेहतर है यदि जरूरी हो तो यहाँ भारी सामान न रखें। खाने-पीने का सामान उत्तर-पश्चिम दिशा में या रसोईघर के उत्तर-पश्चिम भाग में स्टोर करें जिस दरवाजे से अधिक आना जाना हो या मुख्य द्वार यदि रसोईघर के ठीक सामने हो साथ ही पति पत्नी के ग्रह-नक्षत्र कलह का इशारा देते हैं तो बेहतर होगा कि दरवाजों की जगह बदलवाएँ वरना उक्त परिस्थितियाँ आग में घी का काम करती हैं।
वास्तुशास्त्र में वेध काफी महत्व रखता है। यह बाधा या रूकावट के संकेत देता है। भवन अथवा मुख्य द्वार के सामने अगर पेड़, खंभा, बड़ा पत्थर आदि या जनता द्वारा प्रयोग होने वाले मार्ग का अंत होता है तो उसका विपरीत असर पड़ता है। जब वेध व भवन के बीचों-बीच ऐसी सड़क हो जिसमें आम रास्ता हो तो वेध का प्रभाव पूरी तरह तो नहीं मगर बहुत कुछ कम हो जाता है। घर पर भी किसी कमरे के दरवाजे के सामने कोई वस्तु मसलन जसे सोने के कमरे के सामने ऐसी सजावटी वस्तुएँ तनाव और चिंताओं के कारण या नींद में बाधक हो सकती है।
भवन के बीचों-बीच का हिस्सा ब्रह्म स्थान कहा जाता है। इसे खाली रखा जाना चाहिए। जैसे फर्नीचर या कोई भारी सामान यहाँ पर सेहत व मानसिक शांति को प्रभावित करते हैं। ब्रह्मस्थान वाले क्षेत्र में छत में भारी झाड़ फानूस भी नहीं लटकाएँ जाएँ। इस हिस्से में पानी की निकासी के लिए नालियों की व्यवस्था का निषेध है, यह आर्थिक नुकसान का संकेतक है।
घर, कार्यालय या संस्था के मुखिया आदि के बैठने, काम करने या सोने की जगह दक्षिण-पश्चिम में बहुत अच्छी मानी गई है। ऐसी स्थिति में उनका अपन से छोटे सदस्यों, बच्चों तथा कर्मचारियों, प्रबंधकों आदि पर बेहतर नियंत्रण रहता है। घर पर मेहमान या आफिस में मुलाकात करने वालों के बैठने का इंतजाम कुछ इस तरह होना चाहिए कि उनका मुँह दक्षिण या पश्चिम की ओर होना चाहिए तथा गृहस्वामी या वरिष्ठ अधिकारी उत्तर या पूर्व की ओर मुँह करते हुए बैठें। बच्चे यदि माता-पिता के अनुशासन में न हों और उनके लिए चिंता का कारक हों तो उत्तर-पूर्व दिशा में बच्चों के सोने व पढ़ने की व्यवस्था करें। टेलीफोन, फैक्स का उचित स्थान उत्तर-पूर्व दिशा में है।
वास्तुशास्त्र के साथ ज्योतिष का ज्ञान होना आवश्यक है। आजकल ज्योतिष और वास्तुशास्त्र एक आकर्षक व्यवसाय के रूप में उभर कर आ रहे हैं। अधकचरे वास्तुशास्त्री अजीबो-गरीब उपाय बतलाते हैं। अतः वास्तुशास्त्री का चुनाव सावधानी से करिए। लोगों की परेशानियों से आनन-फानन छुटकारा दिलवाने का बढ़-चढ़कर दावा करने वालों से हमेशा सावधान रहें।
वास्तुशास्त्र का प्रयोग ज्योतिष को ध्यान में रखते हुए करना अधिक लाभदायक होता है। यह ध्यान रखें कि जीवन सुख-दुःख का मिश्रण है, अतः अंधविश्वास, धर्म, आदि से हटकर इन विधाओं का वैज्ञानिक पक्ष पहचानना सीखें।

1 टिप्पणी:

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